Friday, 26 May 2017

Brajbhasha Poem

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 1-
दाम की दार छदाम के चार घी अँगुरियन लैँ दूर दिखायौ ।
दोनो सो नोन धरौ कछु आनि सबरी तरकारीन कौ नाम गिनायौ ।
विप्र बुलाय पुरोहित कूँ अपनी बिपता सब भाँति सुनायौ ।
साहजी आज सराध कियो सो भली बिधि सोँ पुरखा फुसलायौ ।
2-
"सुनबे बारौ कोई नाँय, टर्रामें चों"।
ऐसौ कह कें अपनौ जोस घटामें चौं॥
जिन कों बिदरानों है - बिदरामंगे ही।
हम अपनी भासा-बोली बिदरामें चौं॥
ब्रजभासा की गहराई जगजाहिर है।
तौ फिर या कों उथलौ कुण्ड बनामें चौं॥
ऐसे में जब खेतन कों बरखा चँइयै।
ओस-कणन के जैसें हम झर जामें चौं॥
जिन के हाथ अनुग्रह कों पहिचानत नाँय।
हम ऐसे लोगन के हाथ बिकाबामें चौं॥
मन-रंजन-आनन्द अगर मिलनों ही नाँय।
तौ फिर दुनिया के आगें रिरियामें चौं॥
3 -
कुहासौ छँट गयौ और, उजीतौ है गयौ ऍह।
गगनचर चल गगन कूँ, सबेरौ है गयौ ऍह॥
हतो बू इक जमानौ, कह्यौ कर्त्वो जमानौ।
चलौ जमना किनारें - सबेरौ ह्वै गयौ ऍह॥
बू रातन की पढ़ाई, और अम्मा की हिदायत।
अरै तनिक सोय लै रे - सबेरौ ह्वै गयौ ऐ॥
अगल-बगलन छत्तन पै, कहाँ सुनबौ मिलै अब।
कि अब जामन दै, बैरी - सबेरौ ह्वै गयौ ऐ॥
4-
ब्रज के सिवाय होयगी अपनी बसर कहाँ।
ब्रज-भूमि कों बिसार कें जामें किधर? कहाँ?
कनुआ सों दिल लगाय कें हम धन्य है गये।
और काहू की पिरीत में ऐसौ असर कहाँ॥
सूधे-सनेह की जो डगर ब्रज में है हजूर।
दुनिया-जहाँ में कहूँ ऐसी डगर कहाँ॥
तन के लैं तौ ठौर घनी हैं सबन के पास।
“मनुआ” मगर बसाओगे, मन के नगर कहाँ॥
उपदेस ज्ञान-ध्यान रखौ आप ई भैयाऔ।
जिन के खजाने लुट गये बिन कों सबर कहाँ॥
5-
नेंक तौ देख तेरे सामहिएँ ।
काह -काह कर’तें तिहारे घर बारे॥
एक कौने में धर दियौ तो कूँ ।
खूब चोखे तिहारे घर बारे॥
जहर पी कें सिखायौ बा नें हमें।
हमारी गैल में रपटन मचायबे बारे।
तनौ ई रहियो, हमन कों गिरायबे बारे॥
बस एक दिन के लिएँ मौन-ब्रत निभाय कें देख।
हमारी जीभ पे तारौ लगायबे बारे॥
जनम-जनम तोय अपनेन कौ संग मिलै।
हमारे गाम ते हम कों हटायबे बारे॥
हमारे लाल तिहारे कछू भी नाँय काह ।
हमारे ‘नाज में कंकर मिलायबे बारे॥
6-
शीघ्र ई नाँय शीघ्रतर आबै।
अब तौ अच्छी सी कछु खबर आबै॥
कोई तौ उन अँधेरी गैलन में।
रात कूँ जाय दीप धर आबै॥
राह तौ बीसियन मिलीं मग में।
अब जो आबै तौ रहगुजर आबै॥
मेरी उन्नति कौ मोल है तब ई ।
जब सबरेन पै कछु असर आबै॥
है अगर सच्च-ऊँ गगन में बू ।
एक-दो दिन कूँ ई उतर आबै॥
बा कौ उपकार माननों बेहतर।
जा की बिटिया हमारे घर आबै॥
जुल्म की धुन्ध में, भलाई की।
"घाम निकरै तौ कछु नजर आबै"॥


 

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